रूप विनायक रूंख वर, रूंख सारदा रूप। 
देवां रा इण मां दरस, भू छाजण बड भूप।।1।। 
                    जरणा रूंखां री जबर, करणा जग उपकार। 
                      सरणागत रिच्छक सदा, भरणा फल भण्डार।।2।। 
                    करतां देख्या ना कदै, बिरछां रूंखां बात। 
                      इणरौ जीवण अलइदौ, समझवान रै साथ।।3।। 
                    भोजन सूं जीवै बिरछ, पीवै अरु पांणीह। 
                      पीड़ा संकड पावियां, होवै दुख हांणीह।।4।। 
                    जीवण सारू जगत मां, मान ध्यान मन मोद। 
                      इला बढ़ावण आफलै, अपणी तरवर ओद।।5।। 
                    सदगुण वाला घणा सदल, मिलजुल राखै मेल। 
                      साखी राखी सायता, करै मितवां केल।।6।। 
                    आवै निजर न एकदम, धतां बिरछां ध्यान। 
                      बीजां भीतर बिरछ री, सूती रह संतान।।7।। 
                    दांत बिना रा दरखतां, भोजन इधकौ भाय। 
                      आवै इण कारण इयै, दरब तरल ही दाय।।8।। 
                    पानां रै मिस पेड़ रा, मुख अणगिरणती मान। 
                      जड़ सूं करवै जोर रौ, पिरथी रौ रस पान।।9।। 
                    अंगारक माड़ी हवा, सुद बिरछां संजोग। 
                      जीव चराचर जगत मां, जीवै इसड़ै जोग।।10।। 
                    होड़ा बिरछां मां हुवै, पावम सूर प्रकास। 
                      तन हरखै घण तरवरां, पायां अरक उजास।।11।। 
                    मूल मंत्र जीवम मही, एकौ नांव उजास। 
                      वध वध नै आगै वध, पावण रूख प्रकास।।12।। 
                    पाक्या फल रौ पवन सूं, बिखर गयौ जद बीज। 
                      जामण धरती झेलियौ, रजा हेज वस रीझ।।13।। 
                    बीज रमै धर गोद बिच, अपणायत आकूत। 
                      धारी रिच्छा हीय घर, हवा तावड़ै हूंत।।14।। 
                    बाजै सर सर वायरौ, तावड़ बावड़ तेज। 
                      सूतौ बीज निसंग सुख, हां ऊंडै घर हेज।।15।। 
                    बलती री फटाकर बिच, झिलै मानखौ जीर। 
                      निरभै सूतौ बीज नग, गोद धरा घमघोर।।16।। 
                    लोकै झेलै लोगड़ा, देवै लूवां दोट। 
                      लीनी बीज उमेद लग, अभै धरा री ओट।।17।। 
                    ग्रीखम घर री गोद मां, रहियौ बीज बिताय। 
                      रिच्छा हुवतां रात दिन, इच्छा बाकी आय।।18।। 
                    आंधी री सौकड़ इसी, चुगती बहवै चीज। 
                      साथ बीज तरवर तगड़, खेत उडावै खीज।।19।। 
                    उड़तौ बीज अकास मां, आंधी रै उनमान। 
                      अलगो पड़ियौ आयनै, घर दीधौ हिव ध्यान।।20।। 
                    आयौ ऊपर आवरण, बीज तणे मजबूत। 
                      सूतौ निरभै बिरछ सिसु, परतापी धरपूत।।21।। 
                    बरसालौ धर वापरै, अब भालौ आनन्द। 
                      हेतव आतां हरिखयो, पांणी बीज प्रबन्ध।।22।।                    
                    रूंख रौ जलम 
नेड़ौ पांणी नावड़ै, हेत घणौ हरखंत। 
तेम मिलै जल बीजतन, जेम मिलै दुयसंत।।23।। 
                    बीज रमै घर बीच मां, पिरथी करै पुकार। 
                      सुतध इव सोवौ मती, नव जग आव निहार।।24।। 
                    माटी गरमी जल मिलै, मिलै बीज रौ मेल। 
                      जलमै तरवर सिसु जदै, करबा जीवण केल।।25।। 
                    सूता बिरछां बीज सिसु, अवनी कियौ उपाय। 
                      चारम विरदावै चमूं, (तियां) वसुधा द्वुम बिरदाय।।26।। 
                    अंगां जेम अचेत रै, दवा घूंट मुख देत। 
                      बीज तेम जल भेटतां, लहर हरख तन लेत।।27।। 
                    चित नूं आई चेतना, रोम रोम रलकंत। 
                      पाणी रा परताप सूं, तन पायो द्वुम दंत।।28।। 
                    कोडायी धर कूख मां, अंकुर निकलै आय। 
                      आवण वार उतावलौ, विटप बीज विकसाय।।29।। 
                    अंकुर निकलै ऊमदा, नवा जलम रै नांव। 
                      जलम लियां इण जगत मां, दुखां तणो दरसाव।।30।। 
                    राजी खिमताली रसा, झाझी ममता जांण। 
                      चूकै नांही चाम सूं, अवनी रा औसांण।।31।। 
                    जमणणी छै जणणी जबर, खरी खमा री खान। 
                      और न औपे ओपमा, माता जिसड़ै मान।।32।। 
                    जीव विराजै जगत मां, छक स्वारथ री छांव। 
                      स्वारथ सूं बंध्या सकल, नींस्वारथ घर नांव।।33।। 
                    आपां स्वारथ आपमै, जवरा गूंथा जाल। 
                      नींस्वारथ धरती नखै, सब री करै संभाल।।34।। 
                    अंकुर हिलियौ आस मां, रास धरा री रीझ। 
                      कोड हूंत मुख काढियौ, बारै धरती बीज।।35।। 
                    इला बीज अंकुर कढ़ै, भीतर सेवा भाव। 
                      तर तर अंकुर ताकवै, दुनिया रा दरसाव।।36।। 
                    ओपै अंकुर ऊगतौ, पासै ममता पाय। 
                      गरीबजै ज्यूं गीगलौ, जामण गोद्यां जाय।।।37।। 
                    पाबासर मुगता प्रभा, मूरत मिंदर मांय। 
                      तेम आभ अंकुर तणी, थिरा विचालै थाय।।38।। 
                    पान दोय लै पूगियौ, रूप धारबां रूंख। 
                      हर हर मां जबरौ हरख, करै मैदनी कूख।।39।। 
                    सरवर पोयण फूल सम, भारिव ऊगत भोर। 
                      तेम आभ पिरथी तिलक, जांणी अंकुर जोर।।40।। 
                    जूनै मोहनजोदै, दरखत परथा देख। 
                      बावड़ पूजण बिरछा रा, मिलिया अठै अलेख।।41।। 
                    बौध जैन बिरछां वलू, दर दर पूजम देख। 
                      पाली साहित मां परम, पूजण बिरछां पेख।।42।। 
                    रामायण सजावट रख, कलदातां बडक्रीत। 
                      मिलवै जातक ग्रन्थमझ, बरगद पेड़ पवीत।।43।। 
                    वेद उपनिसद भाखिया, खरा गुणां री खान। 
                      म्हाभारत रै मांयनै, रूंखां तरफ रूझान।।44।। 
                    अठदस पुरांण आपणा, मेघा रा महरांण। 
                      पूजण विधियां पारखी, पेड़ स्कन्ध पुरांण।।45।। 
                    पग पग परघै पूजती, उर मै राख उमाव। 
                      मनु हीयै रै मांयनै, बिरछां आदरभाव।।46।। 
                    जेठ अमावस जावमऔ, पूजण बड़लै पास। 
                      गोगै दरसावै घमआ, खेजड़़ पूजै खास।।47।। 
                    सोम बड़, सनी पीपंली, केलौ विसपत वार। 
                      बारी पूजण वारखि, आक रूंख इदकार।।48।। 
                    काती मां पूजै किती, सुन्दरियां तन साख। 
                      पूजण सारू पींपली, वत्तौ व्है वैसाख।।49।। 
                    काती सुद नौमी कथूं, पूज आंवलै पेख। 
                      फागण सुद ग्यारस फलै, दरस आंवलै देख।।50।। 
                    दौड़ वधाईदार दै,  जुगत वधाी जान। 
हाथां डाली खेज़ड़ी,  मांडै पूजण मान।।51।। 
                    जपकै लावै जाल री, खंडित  तड़ी खवास। 
                      तौरण वानै वींद तद, अरधांगण  रै आस।।52।। 
                    सावां व्यावां सूझवै,  गोरव वाली गाथ। 
                      करै पूजण कैरटै,  सका मूनणै साथ।।53।। 
                    गावै हरजस गौरियां, पावण मुगती पंथ। 
                      मरियै ठरियै मोकला,  पथवारो पूजंत।।54।। 
                    रहसी अलगौ रोग तन, वासै  विसवावीस। 
                      नित नित पूज्यां नींबड़ौ, औ देसी आसीस।।55।। 
                    रूंख रोपण म्हातम 
                      रोपण चरचा रूंख री, करै  मिनख सरकार। 
                      कथणी करणी फरक कर, वरतै  इम वैवार।।56।। 
                    सांयत हीणै जगत सूं, होवै  मिनखां हांण। 
                      जीवम सुखमय हित जगत, रूंख  जररी जांण।।57।। 
                    आखूं द्वुम उपयोगिता, जीव जरूरी जांण। 
                      संत रिखी मुनि देव सै,  बिरछां किया बखांण।।58।। 
                    रूंख आदमी रोपनै,  पावै जस बड पांण। 
                      पितरां भावी  पीढ़ियां, करै  एम कल्यांण।।59।। 
                    पितर पान देवां पुहुप, आयां  छायां और। 
                      फाऊ मां द्वुम देय फल,  पथ सेवा अठपौर।।60।। 
                    रूंख जिका नर रोपिया, लाभै  सुरग लहीस। 
                      जीव चराचर दै जगत, उणनै  बड आसीस।।61।। 
                    ब्रख रोप्यां छूटै नरग, वणै  वराह पुरांण। 
                      जग दत भू गौ पांच जिग, पावै  फल निज पांण।।62।। 
                    महिमा पदम पुराण मझ, आगै  भणियां आय। 
                      पासै नाडी पींपली,  रोप्यां नर धन पाय।।63।। 
                    रोप्यां असोक  रूंखड़ौ, सोगां  रोगां साय। 
                      धरम जति जामून धर, पुन  रोप्यां नर पाय।।64।। 
                    चंगे चित ऊजल चरित, दामण  वप दीदार। 
                      सुन्दर मिलवै  सुन्दरी, रोप्यां  रूंख अनार।।65।। 
                    वणसी सद वातावरण, सजै रोग न  सोय। 
                      निनंग रोप्यां नींबड़ौ,  हां रिव राजी होय।।66।। 
                    आस पूरवै आदमी,  रोप्यां रूंख पलास। 
                      लोक बिरम री लालसा, जांणो  पूरी जास।।67।। 
                    व्हालौ घम  चंदण बिरछ,  लोकै जिसकौ लगाय। 
                      पाप नसावै पैलड़ा,  पुन आंछा जग पाय।।68।। 
                    फल मीठा रस मां फजल,  देहां ताकत देत। 
                      आम्बो रोप्यां आदमी,  सुख भोगै साकेत।।69।। 
                    खलक लगायां खेज़ड़ी,  जांणौ धन बड जोग। 
                      रोप्यां बड़लौ  रूंखड़ौ, रे  वप रहै निरोग।।70।। 
                    सदल लगावै जिण सिरस, काटै  पाप करूर। 
                      लहरावै नभ  लोक मां,जस री धजा जरूर।।71।। 
                    रूंख रोहिड़ौ रोपियां, थाट पाट घण थाय। 
                      गूगल जालां गूंदियां, लेवौ लाभ लगाय।।72।। 
                    मिंदर नाडी मारगां,  रोप्यां नखै निनंग। 
                      इहलोक परलोक दहूं,  सुधरण उदरण संग।।73।। 
                    लालण पालण लाड सूं, पुत्र  समौ ही पेख। 
                      रिच्छा करियां  रूंख री,  इच्छा फलै अलेक।।74।। 
                    वधै वेलड़ी वंस री, ज्यूं  तर टोई टूंक। 
                      इला कीरती ऊजली,  रोप्या जिण नर रूंख।।75।। 
                    रूंख रोपण विधि 
लोकै रूंख लगावता,ं तंत पंत लै ताल। 
करै सफल सबकामना, वणतां विरछ विसाल।।76।। 
                    रोप्यां पाछै रूंखड़ो, होवण दो मत हांण। 
                      सबल रूखालो सासती, जगत जरूरी जांण।।77।। 
                    घिरयां बादल सूं गिगन, छियां छांवली छान। 
                      बरसलौ रोपण बिरछ, मौसम आछौ मान।।78।। 
                    हाथ डोढ़ खाडौ हुवै, जांण कसी रै जौर। 
                      चौवड़ घावड़ चौकड़ी, अतरी ऊंडी और।।79।। 
                    खाडै माटी खोद नै, बारै दहौ बिछाय। 
                      रूत प्रभाव सारू रसा, बारै बगत बिताय।।80।। 
                    रूत प्रभाव होयां पछै, काकंर पाथर काड। 
                      सड़ियौ गौबर साथ मां, रालौ माटी खाड।।81।। 
                    टोकरिया मां टालका, चुणबा पौधा चोप। 
                      पौधसाल सूं पावण, रूंख करण धर रोप।।82।। 
                    पिंड परख नै पौध रौ, खाडै माटी खोद। 
                      बना नमी जल बालटी, गेरौ खाडै गोद।।83।। 
                    दरखत दीमक दाव सूं, रिछ्या एम रखाय। 
                      नासक कीट दवाईय.ां, रेती मांय रलाय।।84।। 
                    पौधौ सीधौ पिंड सूं, लपकै दहौ लगाय। 
                      थेली पोलीथीन थी, वेगी काट वगाय।।85।। 
                    गोड जमी ऊपर गहै, जड़ां जमी मां जाय। 
                      घर सुत च्यारूंमेर घर, देवौ रेत दबाय।।86।। 
                    भली भांत सूं बिरछ नै, सजल दहौ भल सींच। 
                      दीठ मीट रख बिरछ दिस, मत बैठो चख मीच।।87।। 
                    जुत कंटीली झाड़ियां, गट्टे गोल लगाव। 
                      रिछ्या करवा रूंख री, बाड़ा जबर वणाय।।88।। 
                    देख भाल कर रात दिन, पूरी पांणी पाव। 
                      लालण पालण लाडलां, रूंखां राख रखाव।।89।। 
                    नीर हवा उलटी नखै, पड़ै न सुलटी पेस। 
                      दुरलभ दरखत होवणा, मोटा मरुधर देस।।90।। 
                    रूंख रौ बालपणौ 
                      दो दो पत्ता दीखिया, पड़बा जगत पिछांण। 
                      राजी बालक रूंखड़ौ, अवनी रै आपांण।।91।। 
                    तींनू पत्ता ताकता, चौथौ पत्तौ चाय। 
                      बालकपण रूंखां बसै, मावड़ रसा रमाय।।92।। 
                    पवन तेज परताप ती, डरपत तरवर डोल। 
                      पड़ै उठै धरती परस, छिता नेह लै छोल।।93।। 
                    पुचकारै घर प्रेम सूं, खलक दुखां रौ खेत। 
                      विपदां संकट मां विटप, चित मां हीमत चेत।।94।। 
                    कानां सीखां सै करै, डिगती हिलती डाल। 
                      अपणायत द्वुम अंजसै, वसुधा नेह विचाल।।95।। 
                    जामण नूं माथौ झुकै, पड़ै चरण धर पेस। 
                      हिलता पत्ता हां करै, सीखां रै संदेश।।96।। 
                    रमतौ बालक रूंखड़ौ, जमतौ जीवण जोर। 
                      स,मतौ देखे घर सदा, नमतौ नवौ नकोर।।97।। 
                    पत्तौ आयौ पांचमौ, पक्कौ मत्तौ पाय। 
                      डंठल काढी डालियां, हिवड़ौ घर हरखाय।।98।। 
                    रसा मात नित रूंख रै, भेजै कामू भेट। 
                      तेम नमी रहवै तदिन, हाजर जडांज हेट।।99।। 
                    नवां नवां द्वुम नीसरै, पत्ता डाला पूर। 
                      रसा कमी नांही रखै, साज नवादौ नूर।।100।। 
                    पांणी जीवण मां प्रबल, नीर बिना के नींव। 
                      पांणी रै परताप सूं, जीवै सगला जीव।।101।। 
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